संपादक की कलम से
माँ अंजनी माता और माँ अर्बुदा की असीम कृपा से भारत देश और विदेश में रहते अपने जाती बंधुओ
के बीच में परस्पर एक संपर्क इसी हेतु रचाये और उसके द्वारा अपेक्षित विकास बना सके उस हेतु से ये www.anjanaparivar.com के सपने को साकार करने के लिए तथा सेवा, संगठन और सम्पनता के प्रतीक रुप आंजना समाज समक्ष ये आधुनिक टेक्नोलोजी द्वारा समाज को एक मंच पर एकत्रित करने के लिए ये कार्य करके आनंद की अनुभूति करते है |
ये अपनी चौधरी-आंजनासमाज के वेबसाइट में
(1) आंजना समाज का इतिहास (2) कुलदेवी माँ अर्बुदा (3) राजारायजी आश्रम (4) मेम्बरशिप (5) मेरिजब्यूरो (6) पॉलिटिक्स (7) आंजना-चौधरी कम्युनिटी न्यूज़ (8) संस्थाओं (9) अखिल भारतीय आंजना महासभा (10) आंजना यूथ कलब (11) ट्रेडीशनल ड्रेसिस (12) वूमन एक्टिवटी का संकलन करने में आया है | जो समाज को बहुत उपयोगी हो सकता है |
आशा है की ये संपर्क सेतु इसी पुष्प समाज की छोटी-बड़ी हरेक व्यक्ति को सुगंध देकर उपयोगी बनेगा और समाज में खुशबू फेलायेगा |
आपका स्नेहांकित
जगदीश आंजना
आंजना की उत्पति
"आंजी नाखे ते आंजना" कहावत को सार्थक करना और गोरोवान, मजबूत बांधो, तेजस्वी आँखे और खड़ताल काया धराते आंजना ऐ अत्यंत बुद्धिशाली स्वाभिमानी और मेहनत होते है | कृषि और पशु पालन के साथ बंधा हुआ ये समाज गुजरात में पचास से जितने गोल में फेला हुआ है | जिसमे बार, बावीसी, साडी सताविसी, वादीयार, जेतोड़ा, चोथिया, उमरान धान्धार तेर झला, इडर बेतालिसी मोडासिया, मालपुरिया दक्षिण में नवगाम, कामरेज वगेरह का समावेश होता है |
आंजना में पटेल, चौधरी, देसाई जाती प्रचलित है| आंजना की कुल २३२ सखा हैं| जिसमे अटीस ओड, आकोलिया, फेड़, फुवा, फांदजी, खरसान, भुतादिया, वजागांड, वागडा, फरेन, जेगोडा, मुंजी, गौज, जुआ लोह, इटार, धुजिया, केरोट, रातडा, भटौज, वगेरह समाविष्ट हैं|
भारत मैं मुख्यत राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कच्छ और महारास्ट्र मैं आंजना जाती रहती हैं|
भारत मैं मुख्यत राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कच्छ और महारास्ट्र मैं आंजना जाती रहती हैं|
आंजना समाज के अलग-अलग गोल के अभ्यास पर से मालूम पड़ता है कि आंजना स्वभाव में खुद उदार दिल कि होती है| उनका बुलाना, रोटी और ओटला अद्फेरा होता है| वो अन्याय सहन नहीं कर सकते, अन्याय होते देख उनकी आत्मा जाग उठती हैं और न्याय के लिए चाहे जितने कठोर निर्णय लेते हुए भी वो हिचकिचाते नहीं है|
आंजनाओ कि परम्परागत परिवेश में पुरुष झम्भा, पहेरण और धोती पहेनते हैं| सीर पर सफ़ेद पघड्डी बांधते हैं| जबकि स्त्रीया अलग-अलग कलर कि साडी, ब्लाउज डागली और घेरवाले काले व लाल पेटीकोट पहनती है |
हिन्दू शास्त्र के मुजब एक ही कुल में और पितापक्ष के छः पीडी के रिश्ते में तथा मातृपक्ष के पॉँच पीडी के रिश्ते में शादी व्यवहार नहीं करते|
भव्य बादशाही भूतकाल धरानी आंजना जातीका इतिहास गौरान्वित हैं| आंजना कि उत्पति के बारे में विविध मंतव्य/दंत्तकथाये प्रचलित हैं| जैसे
भाट चारण के चोपडे में आंजनाओ के उत्पति के साथ सह्स्त्राजुन के आठ पुत्रो कि बात जोड़ ली है परशुराम शत्रुओं का संहार करने निकले तब सहस्त्रार्जुन के पास गए | युद्घ में सहस्त्रार्जुन और उनके ९२ पुत्रो की मृत्यु हो गयी | आठ पुत्र युध्भूमि छोड के आबू पर माँ अर्बुदा की शरण में आये | अर्बुदा देवी ने उनको रक्षण दिया | भविष्य मैं वो कभी सशत्र धारण न करे उस शर्त पर परशुराम ने उनको जीवनदान दिया | उन आठ पुत्रो मैं से दो राजस्थान गए | उन्होंने भरतपुर मैं राज्य की इस्थापना की उनके वंसज जाट से पहचाने गए | बाकि के छह पुत्र आबू मैं ही रह गए वो पाहता अंजन के जैसे और उसके बाद मैं उस शब्द का अप्ब्रंश होते अंजना नाम से पहचाने गए |
सोलंकी राजा भीमदेव पहले की पुत्री अंजनाबाई ने आबू पर्वत पर अन्जनगढ़ बसाया और वहां रहनेवाले अंजना कहलाये |
मुंबई मैं गेझेट के भाग १२ मैं बताये मुजब इ. स. ९५३ मैं भीनमाल मैं परदेशियों का आक्रमण हुआ, तब कितने ही गुजर भीनमाल छोड़कर अन्यत्र गए | उस वक्त् अंजना पतीदारो के लगभग २००० परिवार गाडे में भीनमाल का निकल के आबू पर्वत की तलेटी मैं आये हुए चम्पावती नगरी मैं आकर रहने लगे | वहां से धाधार मे आकर स्थापित हुए, अंत मे बनासकांठा , साबरकांठा , मेहसाना और गांधीनगर जिले मे विस्तृत हुए |सिद्धराज जयसिंह इए .स . 1335-36 मैं मालवा के राजा यशोवर्मा को हराकर कैद करके पटना में लकडी के पिंजरे मे बंद करके गुमया था | मालवा के दंडनायक तरीके दाहक के पुत्र महादेव को वहिवाट सोंप दिया तब उत्तर गुजरात मे से बहुत से आंजना परिवार मालवा के उज्जैन प्रदेश के आस -पास स्थाई हुए है | वो पाटन आस -पास की मोर ,आकोलिया , वगदा , वजगंथ , जैसी इज्जत से जाने जाते हैं | अंजना समाज का इतिहास राजा महाराजो की जैसे लिखित नहीं हैं | धरती और माटी के साथ जुडी हुई इस जाती के बारे मैं कोई सिलालेखो मे बोध नहीं है | खुद के उज्जवल भविष्य के लिए श्रेष्ठ मार्गदर्शन मनुष्य को इतिहास द्वारा ही प्राप्त होता है | वहिवांचा के चोपडे , जयति भुख्पतर , लोक साहित्य , जाती के लगन गीतों मे से आधा अधुरा इतिहास साथ मे आता है |
पहले के समय मैं उत्तर गुजरात "आनंद " के नाम से जाना जाता था | इस परदेश को गुजर अजन्य के "अंजना " नाम से जाने जाते थे इस परदेश मैं रहते आन्जनाओ के नाम आनंद के ऊपर से उतर आया ऐसा लगता हैं |
गुजरात के रजा भीमदेव के राजपूत सैनिको ने आबू पर्वत पर "अंजना गढ़ " नाम का जन पद स्थायी किया जिसके रहवासी "अंजना" कहलाये |
गौताम्रिशी की पुत्री और महादेव की पत्नी "अंजनी " के वंशज होने से "अंजना " कहलाये |
एक दंतकथा के अनुसार " आन्जनागिरी " पर्वत के उनके भूल रहे थान के जग्य पर से अंजना नाम पड़ा हुआ है ऐसा लगता है |
"अंजना" सहस्त्रार्जुन के वंशज है |
जाट और आंजनाओ के पूर्वज समान थे| वैसे ही पहले के ब्राह्मिन और क्षत्रियो के बिच में शादी का व्यव्हार था|
मध्य एशिया के "अर्जन", पश्चीम एशिया के "अर्जय", यूरोपिन इतिहासविद शेरिंग के अजानी आर्जुनी तथा भारतीय इतिहास आर्जुनायन शब्दों पर से उतर आया है |